Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Wednesday, September 12, 2012

नरोदा पाटिया : न्यायपूर्ण समाज का संघर्ष राम पुनियानी

http://hastakshep.com/?p=24248

नरोदा पाटिया : न्यायपूर्ण समाज का संघर्ष

नरोदा पाटिया : न्यायपूर्ण समाज का संघर्ष

By  | September 10, 2012 at 1:32 pm | One comment | मुद्दा | Tags: 

राम पुनियानी

 

मजिस्ट्रेट डा. ज्योत्सना पारिख का ३१ अगस्त 2012 के फैसले, जिसमें उन्होंने बाबू बजरंगी एवं डाक्टर माया कोडनानी को लम्बी अवधि के कारावास की सजाऐं सुनाई हैं, ने नरोदा पाटिया के लोमहर्षक हत्याकांड के पीड़ितों को अकल्पनीय राहत दी है। उनके लिए यह फैसला मानों ईद की खुशी को लेकर आया है। नरोदा पाटिया में सन् २००२ में क्रूरता का जो नंगा नाच हुआ था उसके शिकार हुए लोगों और जो मारे गये, उनके परिवारजनों को कम से कम यह सांत्वना मिली है कि उनके साथ बर्बर व्यवहार करने वालों को उनके किये की सजा मिल गई है। यह फैसला पीडितों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, घटना के गवाहों और कानूनविदों द्वारा लड़ी गई एक लम्बी लड़ाई के बाद आया है। इन सब लोगों ने हर संभव प्रयास किये कि पीड़ितों के साथ न्याय हो। ऐसा कहा जाता है कि न्याय के बिना शांति स्थापना नहीं हो सकती। इस निर्णय से यह मान्यता पुष्ट हुई है।

इस निर्णय से उन कई झूठे प्रचारों और मिथकों का पर्दाफाश भी हुआ है, जिन्हें साम्प्रदायिक शक्तियों लम्बे समय से फैलाती आ रहीं  थीं। उनमें से पहला और सबसे बड़ा झूठ यह था कि गुजरात की हिंसा, गोधरा ट्रेन आगजनी की प्रतिक्रिया थी। अब तक समाज के बड़े तबके और पूरे भारत व विशेषकर गुजरात के समाज का उस हिस्से, जिसका पूरी तरह से साम्प्रदायिकीकरण हो चुका है, की यही मान्यता थी कि गुजरात के दंगे, गोधरा की प्रतिक्रियास्वरूप हुए थे। अपने निर्णय में मजिस्ट्रेट ने साफ-साफ कहा है कि "हजारों लोगों ने एक राय होकर, पहले से तय इरादे को पूरा करने के लिए, सुनियोजित ढंग से निहत्थे और डरे हुए लोगों पर हमला किया। यह हिंसा, गोधरा की ट्रेन आगजनी की स्वस्फूर्त प्रतिक्रिया नहीं थी। बल्कि पहले से तय सुनियोजित हत्याकांड को अंजाम देने के लिए गोधरा कांड को बहाने बतौर इस्तेमाल किया गया।"  साम्प्रदायिक ताकतों ने गुजरात दंगों को 'स्वभाविक गुस्सा', जिसे राज्य नियंत्रित करने में असफल रहा, का रूप देने की कोशिश की। इस धारणा के विपरीत, अदालत ने कहा है कि यह जान-समझ के अंजाम दिया गया, सुनियोजित हत्याकांड था और गोधरा घटना का इस्तेमाल, केवल बहाने के रूप में किया गया था ताकि गुजरात में समाज को साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत किया जा सके।

भारत में साम्प्रदायिक हिंसा का लंबा इतिहास है। हमारे देश में कई दशकों से सांप्रदायिक दंगे ओर हिंसा होती रही है परंतु कुछ समय से इसने योजनाबद्ध  हत्याकांडो का स्वरूप ग्रहण कर लिया था। यह बात मानवाधिकार संगठनों और दंगों की जांच के लिए नियुक्त किये गये जन न्यायाधिकरण लंबे समय से कहते आ रहे थे। अदालत के फैसले से इस तथ्य की पुष्टि हुई है.

अब तक होता यह आ रहा था कि दंगों में मासूमों का खून बहता था और हिंसा करने वाले सीना फुलाये घूमते रहते थे। पंरतु मानवाधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध संगठनों द्वारा कमर कस लेने से शनैः शनैः स्थितियों बदल रही हैं। अब दंगाईयों के लिए साफ बच निकलना कठिन होता जा रहा है। नरोदा पाटिया मामले में मानवाधिकार संगठनों ने यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया कि दंगों के दोषियों के बच निकलने और अपने राजनैतिक लक्ष्य हासिल करने का सिलसिला बंद हो सके।

इस निर्णय से यह भी स्पष्ट है कि हमारी न्याय व्यवस्था स्वतः दंगों के दोषियों को सजा देने में सक्षम नहीं है इसके लिए तीस्ता सीतलवाड, गगन सेठी, हर्ष मंदर, यूसुफ मुछाला, मुकुल सिन्हा, गोविंद पवार और उनके जैसे अन्य व्यक्तियों के अथक प्रयासों की आवश्यकता पड़ती है। इन लोगों ने घटना के अलग-अलग पहलुओं पर कार्य किया और एक-दूसरे के प्रयासों में मदद की और तब जाकर दोषियों को सजा और पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित हो सका। इन लोगों को हमारी व्यवस्था की कमियों से झूझना पड़ा। उन्हें यह सुनिश्चित करना पड़ा कि पीड़ितों और गवाहों को पर्याप्त सुरक्षा मिले और शिकायतों व प्रथम सूचना रपटों को ठीक ढंग से दर्ज किया जाये। उनके ही प्रयासों का यह नतीजा था कि न्याय के रास्ते में जो बाधाएं थीं, वे एक-एक कर दूर हो सकीं।

इस सिलसिले में जो पहला प्रश्न उठता है वह यह है कि क्या हालात ऐसे ही बने रहेंगे?  क्या न्याय पाने के लिए इतने सघन प्रयास किये जाने होंगे?  क्या पीड़ितों व गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने  हेतु इतनी मेहनत करना होगी? आज समय की मांग है कि हमारा समाज और राष्ट्र, पुलिस व्यवस्था व राजनैतिक नेतृत्व के  दृष्टिकोण में इस तरह का परिवर्तन लाया जावे ताकि न्याय मिलना एक सामान्य, नियमित एवं स्वचालित प्रक्रिया बन सके न कि एक अपवाद। आज भी भागलपुर, दिल्ली और मुंबई सहित कई स्थानों पर हुए दंगों और हत्याकांडों के पीड़ित न्याय पाने का इंतजार कर रहे हैं।

इस फैसले का एक पहलू है हिंसक दंगाईयों का नेतृत्व करने वाले लोगों का चरित्र। माया कोडनानी, राष्ट्रसेविका समिति के रास्ते रजनीति में आईं थीं. यह  संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अधीन काम करता है। यहां यह कहना समीचीन होगा कि आर.एस.एस. के दृष्टिकोण में महिलाएँ स्वनिर्णय की क्षमता नहीं रखतीं और इसलिए जहां आर.एस.एस. में महिलाओं को कोई स्थान नहीं मिलता वहीं महिलाओं के संगठन का नाम राष्ट्रसेविका समिति है. अर्थात पुरूष  अपने निर्णय स्वयं लेते हैं जबकि महिलाऐं सेवा करतीं हैं।

गुजरात दंगों के दौरान माया कोडनानी विधायक थीं। नरोदा पाटिया में उन्होंने उन्मादी भीड़ का नेतृत्व किया। उसे भड़काया और हथियार और असलाह उपलब्ध करवाए। इसके बाद, उन्हें मंत्री बना दिया गया। जब उनका नाम दंगों के मामलों में आया तब उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया और राज्य सरकार ने उनसे नाता तोड़ लिया। यद्यपि विहिप और संघ के कुछ सदस्य इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं परंतु संघ परिवार की यह पुरानी नीति है कि जब भी उसके किसी सदस्य का किसी अपराध में शामिल होने का पर्दाफाश हो जाता है — चाहे वह गांधी ह्त्या हो या पास्टर स्टेंस को जिंदा जलाया जाना या आतंकी हमलों में भागीदारी– तुरंत यह घोषित कर दिया जाता है कि संघ का उस व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। जबकि सच यह होता है कि वे लोग संघ की विचारधारा में रचे-बसे होते हैं और संघ की नीतियों का ही क्रियान्वयन कर रहे होते हैं। कोडनानी ने कतिपय कारणों से यह कहा कि वे राजनीति की शिकार हुईं हैं। उनका यह बयान रहस्यपूर्ण है और हम केवल उम्मीद कर सकते हैं कि वे किस राजनैतिक षड़यंत्र की शिकार बनीं, यह देर-सबेर सामने आएगा।

नरोदा पाटिया हत्याकांड के एक अन्य खलनायक हैं बाबू बजरंगी, जिनके द्वारा 'तहलका' टीम के सामने किये गये अपने कारनामों के वर्णन से पूरे देश को धक्का लगा था। उन्होंने कहा था कि उन्हें तीन दिन दिये गये थे और यह भी कि वे और उनके साथी टेस्ट मैच नहीं वरन ओ.डी.आई. खेल रहे थे, जिसमें कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा स्कोर खड़ा करना होता है। बाबू बजरंगी ने यह भी फरमाया कि निरीह मुसलमानों को मारने के बाद वे राणा प्रताप की तरह महसूस कर रहे थे। शायद वे नहीं जानते कि राणा प्रताप ने धर्म के नाम या धार्मिक कारणों से किसी को नहीं मारा था। राणा प्रताप तो केवल सत्ता प्राप्त करने के लिए अन्य राजाओं से युद्धरत थे। बाबू बजरंगी शायद यह भी नहीं जानते होंगे कि राणा प्रताप की सेना में बड़ी संख्या में मुसलमान सिपाही थे। राणा प्रताप के लिए लड़ते हुए उनकी फौज के जो सिपहसालार मारे गये, उनमें से एक का नाम था हाफिज खान सूर, जिनका मकबरा आज भी हल्दीघाटी में है। मध्यकालीन इतिहास को तोड़ मरोड़ कर हम उसे किस तरह नफरत फैलाने का हथियार बना रहे हैं, यह स्पष्ट है.

और श्री नरेन्द्र मोदी के अन्तःकरण का क्या? नरेन्द्र मोदी को सन् 2002 के हत्याकांड से बहुत राजनैतिक लाभ हुआ। क्या उन्हें इस हत्याकांड पर कुछ पछतावा है? क्या वे क्रूरतापूर्वक मौत के घाट उतार दिये गये हजारों लोगों के लिए दो आंसू बहाना चाहेंगे?  क्या उन्हें इस बात का दुःख है कि जिन लोगों को उन्होंने राजनीति में आगे बढ़ाया, उन्हें ही हिंसा का दोषी ठहरा कर अदालतों द्वारा लम्बी सजाऐं सुनाई जा रही हैं?

हमें उम्मीद है कि हमारे देश के कर्ताधर्ता, हमारे कानून और व्यवस्था में इस प्रकार के बदलाव लायेंगे जिससे हिंसा करने वालों को स्वमेव सजा मिले और वह सजा ऐसी हो कि आगे कोई हिंसा करने या भड़काने की हिम्मत न कर सके। इस निर्णय का स्वागत है परंतु इसने कुछ प्रश्नों को भी जन्म दिया है. उन लोगों का क्या जिनका कर्तव्य था कि वे निर्दोषों को रक्षा करें, उनकी शिकायतों को गंभीरता से लें और दोषियों को सजा दिलवायें? हमें एक ऐसी व्यवस्था के निर्माण की ओर बढ़ना होगा जिसमें पहले तो नफरत की आग में निर्दोष भस्म ही न हों और अगर कोई राजनैतिक ताकत, अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए इस प्रकार की किसी त्रासद घटना को अंजाम दे, तो उन सभी लोगों को सजा मिले, जिन्होंने षड़यंत्र रचा, हिंसा की या अपने कर्तव्यों के अनुपालन में असफल रहे। हमें विश्वास है कि हमारे देश के प्रतिबद्ध मानवाधिकार रक्षक आगे बढेगें और एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए काम करेंगे जिसमें शांति और न्याय दोनों हों।

(मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण: अमरीश हरदेनिया) 

(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थेऔर सन् २००७ के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

राम पुनियानी

राम पुनियानी (लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे, और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...